Wednesday 15 August 2012

गर्व से कहे,हम भारतीय हैं !!!


बहुत हुआ अब रोना धोना .....
शिकवा शिकायत बहुत सुनी..
बहुत रतजगी हुई अँधेरी राते में ...
स्याह गमो में लिपटी बाते बहुत सुनी ...

आज पूछता है दिल बस एक सवाल, जो बाजिव है बेबजह नहीं...

क्या खुशियों के चिराग जले नहीं है, क्या अंधियारा छंटा नहीं है...
क्या हमारे सपने परवान चढ़े नहीं है, क्या उजियारा हुआ नहीं है ..

फिर क्यूँ हम हर पल क्रंदन करे ?
आइये ना दोस्तों !
आज गर्व से हम भारत मां का वंदन करें..

ये सच है ! हमने शहीदों की थाती को, ठीक  से  सम्हाला नहीं है...
ये सच है ! हमने उनके सपनो को, हुबहू  अपने जज्बों में पाला नहीं है...
ये भी सच है ! हमने देश के सीने पर ,खंजर हजार चुभोये है...
जाति और धर्म के नाम पर, सबकी भावनायों के टुकड़े हजार किये है...

पर आज मांगता है हमारा दिल बस एक जबाब, जो बाजिब है ,बेसबब नहीं..
बावजूद इसके !

क्या हमारे लोगो ने दुनिया को, अपनी सहिष्णुता और सर्व धर्म सदभाव की शिक्षा नहीं दी है...
इस देश की मिटटी में जन्मे लोगो ने, विदेशो के कोने-कोने में अपने वैदिक ज्ञान की दीक्षा नहीं दी है...

फिर क्यूँ हम ,हर रोज अपनी बुराइयों का रुदन करे?
आइये ना दोस्तों !!!
हम गर्व से, अपने देश के सपूतो का अभिनन्दन करे...

मित्रों !  सच ये भी है !
देश में भ्रष्टाचार और  उसकी  चर्चा, हर गली - नुक्कड़ पर सुबह और शाम होती है...
गरीबो के धन पर कुंडली मारने और गला काट प्रतियोगिताये भी  सरे आम होती है ..

फिर भी दिल में एक सुकून है! ऐसा  बहुत  कुछ है हममे, जिसकी  वजह  से  बेमिसाल हैं हम....
देश की ऊँची नाक हैं, भारत की अनूठी शान है हम ...

ज़रा  सोचिये  !
क्या कई देशो की चरमराती आर्थिक स्थिति में, हमारे देश की अर्थव्यवस्था की चर्चा नहीं होती?
क्या भारत के  प्रजातंत्रता की मिसाल, कई देशो के बिखरती तानाशाही का उदाहरण नहीं बनती?

फिर क्यूँ ना, हम भारतवासी ,अपनी हर बुरी इच्छाओं का शमन करे ?
आइये ना दोस्तों!

इस गौरव गान से, हम आप, एकता के मीठे सुरों का संगम करे....
हाथ जोड़ कर, शीश नवा कर, प्रेम पुष्प से अपने देश का सपना परिपूरण करें...

Friday 3 August 2012

एक माँ की करुण पुकार !!!

मत कर अत्याचार रे बन्दों ,मत कर यूँ अत्याचार ....

लूटा मुगलों ने ,तो सम्हल  गयी ...
मैंने सोच लिया , वो विदेशी थे ....
अंग्रेजो ने किया ,तो दहल गयी ...
फिर तसल्ली हुई ,वो परदेशी थे ...
तुम सब तो ,  मेरे अपने   हो ....
मैं माँ हूँ तुम्हारी ,तुम स्वदेशी हो ....

फिर मेरे खुद के जायो में  ,ऐसे वैमनस्य और अहंकार क्यूँ ....
अपनों  के बीच  खिंची है ,  नफरत की  ऐसी  दीवार  क्यों ...

मत कर मुझ पर दुराचार रे बन्दों ,मत कर यूँ दुराचार ...

जब जकड गयी ,मैं परतंत्रता की सलाखों में ...
और लहू के आंसू भी ,भरने लगे मेरी  आँखों में ...
तो मेरे अमर शहीदों ने , मुझे मान दिया ...
उस तडपन  से निकाल ,मुझे सम्मान दिया .....
अब  फिर से  ,मेरे माथे की चुनरिया सरकी है ...
 और आपस  में , प्रेम की दीवार  भी कुछ दरकी है ....

यूँ अपने स्वार्थ में लिप्त हुआ , मेरा प्यारा सा संसार क्यूँ ...
ऐसे कर्णधारो के हाथो में  , मेरी अस्मत का  दारोमदार क्यूँ ....

मत कर इन बुराइयों  को अंगीकार रे बन्दों,मत कर यूँ अंगीकार ....

कही  सोने के लिए  फुटपाथ पर ,अख़बार की गद्दी लगती है ...
तो कही मलमल के गद्दों पर ,कुत्तो की भी सेज सजती है ...
कोई फ्रोजेन खाने के साथ भी, भूख लगने की गोली खाता है ....
तो कही भूख से बिलखते बच्चो को ,बासी  रोटी की भी नहीं आशा है ...

ऐसे में मेरी बदहाली के बाबजूद, दुनिया में खुशहाली का आगाज क्यूँ,
भूख हड़ताल करते लोगो के ऊपर भी, पिघलती नहीं है सरकार क्यों,

मेरी नैया है मंझधार रे बन्दों,अब सुनले मेरी  पुकार ...
मेरी विनती बारम्बार रे बन्दों ,मत कर अत्याचार .........