Friday 14 February 2014

किसे समझूं मैं सच्चा प्यार ......

इक प्यार वो भी है ,जो दो दिलो को पल भर में धड़का दे,
इक प्यार ये भी है ,जो उनकी ख़ुशी में खुद को भी मिटा दे...
ये प्यार सपनो में लाये बहार है तो वो उस प्यार मे समर्पण का रंग अपार है..
असमंजस मे हूँ किसे समझूं मैं सच्चा प्यार ......

इक प्यार वो भी है , जो स्वार्थ में रिश्तो को भुला दे,
इक प्यार ये भी है, जो स्व से सर्वस्व को अपना बना दे...
ये प्यार इंसा में देव रूप को झलकाये , तो वो प्यार दानवता का दर्शन कराये...
असमंजस मे हूँ ! किसे समझूं मैं सच्चा प्यार ....

इक प्यार वो भी है ,जो कट्टरता का चलन चला दे ,
इक प्यार ये भी है ,जो खून से खून का फर्क मिटा दे,
ये प्यार भाईचारे का सुंदरतम प्यार है, तो उस प्यार में घृणा औ नफरत बेशुमार है..
असमंजस मे हूँ ! किसे समझूं मैं सच्चा प्यार ....

इक प्यार वो भी है, जहां पैसा प्यार का तराजू बन जाए,
इक प्यार वो भी है ,जहाँ भूखी माँ ,बेटे को अपना हिस्सा खिलाए....
इस प्यार में अँधा क्यूं हुआ संसार है ,जबकि उस प्यार की तमन्ना में अपना जीवन निसार है ...

उहापोह में नहीं हूँ अब,यही है सच्चा प्यार ...

                                                -Dr. M.Prriyadarshini
                                                      Dated 14th Feb,2014