Tuesday 18 October 2011

एक दीवाली ऐसी भी !!!


एक दीवाली ऐसी भी !

दीपो की सुनहरी लड़ी !
अमावस की काली अँधेरी रात में ,
दमदमाती रोशनी की फुलझड़ी ....
रोजमर्रा के उबासी भरे जीवन को
आलोकित करती घडी-घडी ...

पर मन सोचता है कई बार ,
उत्सव किसी के लिए इंतज़ार है,
तो किसी के खुशियों का त्यौहार भी !
कोई हर्ष से उल्लासित है,
तो कोई दुःख से अवसादित भी !
एक दीवाली ऐसी भी तो एक दीवाली वैसी भी ...

शरद की गुलाबी ठंडक में सिहरता तन मन ,
प्रियतम की मदहोशी में हसीन हुआ आलम !
नयनो की जोत में पल पल दिवाली लगे,
दीप की वलिकाओं से सजी दुनिया सुहानी लगे!
मिलन उत्सव लेकर आई एक खुशहाली ऐसी भी,
प्यार के पर्व की एक दिवाली ऐसी   भी ...


भोगवादी समाज में माया ही पूजा है ,
कनकधारा स्रोत्र सा ना मंत्र कोई दूजा है !
धन ही धर्म है और धन ही ईश्वर है,
पैसा ही सबकुछ है बाकी सब नश्वर है !
रिद्धि-सिद्धि दात्री के कृपा की एक कहानी ऐसी भी ,
श्रीलक्ष्मी-धनलक्ष्मी के बारिश की एक दिवाली ऐसी भी ....


ग़रीबी की आग से बच्चे क्षुधाग्रस्त हैं ,
हमारा दीपोत्सव है,वो दुखो से त्रस्त हैं !
एक तरफ पंच्मेवे बंटे,घृत दिए की रौशनी बने,
उनके घरो में कई दिनों से चूल्हे भी ना जले !
हमें आतिशबाजी सूरज चाँद और सितारे लगे ,
उन्हें जगमगाती रोशनी की चमक भी अंगारे लगे !
दर्द और विषाद की एक बदहाली ऐसी भी,
हमारे प्रगतिशील देश की एक दीवाली ऐसी भी.....