Tuesday 18 October 2011

एक दीवाली ऐसी भी !!!


एक दीवाली ऐसी भी !

दीपो की सुनहरी लड़ी !
अमावस की काली अँधेरी रात में ,
दमदमाती रोशनी की फुलझड़ी ....
रोजमर्रा के उबासी भरे जीवन को
आलोकित करती घडी-घडी ...

पर मन सोचता है कई बार ,
उत्सव किसी के लिए इंतज़ार है,
तो किसी के खुशियों का त्यौहार भी !
कोई हर्ष से उल्लासित है,
तो कोई दुःख से अवसादित भी !
एक दीवाली ऐसी भी तो एक दीवाली वैसी भी ...

शरद की गुलाबी ठंडक में सिहरता तन मन ,
प्रियतम की मदहोशी में हसीन हुआ आलम !
नयनो की जोत में पल पल दिवाली लगे,
दीप की वलिकाओं से सजी दुनिया सुहानी लगे!
मिलन उत्सव लेकर आई एक खुशहाली ऐसी भी,
प्यार के पर्व की एक दिवाली ऐसी   भी ...


भोगवादी समाज में माया ही पूजा है ,
कनकधारा स्रोत्र सा ना मंत्र कोई दूजा है !
धन ही धर्म है और धन ही ईश्वर है,
पैसा ही सबकुछ है बाकी सब नश्वर है !
रिद्धि-सिद्धि दात्री के कृपा की एक कहानी ऐसी भी ,
श्रीलक्ष्मी-धनलक्ष्मी के बारिश की एक दिवाली ऐसी भी ....


ग़रीबी की आग से बच्चे क्षुधाग्रस्त हैं ,
हमारा दीपोत्सव है,वो दुखो से त्रस्त हैं !
एक तरफ पंच्मेवे बंटे,घृत दिए की रौशनी बने,
उनके घरो में कई दिनों से चूल्हे भी ना जले !
हमें आतिशबाजी सूरज चाँद और सितारे लगे ,
उन्हें जगमगाती रोशनी की चमक भी अंगारे लगे !
दर्द और विषाद की एक बदहाली ऐसी भी,
हमारे प्रगतिशील देश की एक दीवाली ऐसी भी.....

Friday 23 September 2011

तुम मुझे यूँ बुलाया ना करो !


तुम मुझे यूँ बुलाया ना करो  !

छोटी सी जिंदगानी ,कर्तव्य बोध भी कुछ कम नहीं,
चुनिन्दा सांसो की उलटी गिनती भी अनगिनत नहीं,
कदम-कदम पर नयी मंजिल, हर मोड़ पर नए    हमराही
रात्रि की नीरवता हो या दिन के उजाले में अपनी आवाजाही ,

चरैवेति चरैवेति, मुझे निरंतर चलते जाना है,
अपने  जीवन पथ पर,   अपने कर्मपथ पर ...
ऐसी डगर पर,
कभी पुष्पित तो कभी कंटक भरे सफ़र पर,
तुम मुझे अपनी पुकार से भरमाया ना करो ,
               तुम मुझे यूँ बुलाया ना करो !!!

माना मैंने,तुम्हारा दो पल का साथ भी ,
आकर्षक पड़ाव है मेरे भटकते मन का...
जहा स्वप्निल जहाँ है, फूलों की छांव है ,
पर मुझे यूँ हसीन ख्वाव दिखाया न करो,
                 तुम मुझे यूँ बुलाया न करो !!!

तुम कहोगे नैसर्गिक सौन्दर्य में जीना मेरा अधिकार है,
और चंद खुशियाँ बटोरना ही  मेरे  जीवन का आधार है ,
मुझे पता है तुम्हे परवाह है मेरे सुख-दुःख की ....

पर जरा सोचो !
अगर माली ही स्वयं संवरने लगे तो हमारी बगिया कौन संवारेगा,
अगर पथप्रदर्शक ही भटकने लगे,तो मार्ग दर्शन कौन  कराएगा,
तुम जानते हो तुम्हारी मीठी दलील मुझे कमजोर कर देगी,
तुम मुझे यूँ दिग्भ्रमित कर जाया ना करो,
             तुम मुझे यूँ बुलाया ना करो !!!


Sunday 18 September 2011

तेरी याद आई ऐसे !!!

तेरी याद आई ऐसे !!!


इस दौड़ते जीवन के सफ़र में तेरी सुहानी याद आई ऐसे ,
थकते मुसाफिर  को दो पल सुकून के मिल गए हो जैसे !

तेरे मेरे  संग   होने  का अहसास मन को छू गया ऐसे ,
सर्द मौसम में गुनगुनी धूप का खुशनुमा स्पर्श हो जैसे !

तेरी आँखों में अपना  अश्क  देख  मुझे    लगा  ऐसे ,
निर्मल झील में रक्त  कुमुदिनी खिल रही  हो जैसे !

तेरे दूर  होने के ख्याल  भर से  दिल  छलका  ऐसे ,
हरी-हरी  दूब  पर ओस की बूंदे दमक रही हो जैसे !

तेरे प्यार  की  ख़ुशी से  तन-मन सुरभित हुआ ऐसे,
 महकते  गुलाब से  चमन सुवासित  हुआ हो जैसे!

समय की फिसलती रेत पर तेरी तस्वीर उकेरी है ऐसे,
नदी किनारे शिला-खंड को लहरों ने तराशा हो जैसे !

अधखुले नैनो में स्वप्न की तुलिका ने रंग भरे है ऐसे
हरसिंगार के फूलों ने केसरिया रंग बिखेरे  हैं  जैसे !


तेरी  प्रीत  में   मेरा   यायावर  मन  बन्ध  गया  है   ऐसे,
समंदर  में  कश्ती  को  साहिल   मिल  गया   हो    जैसे !!!

Wednesday 14 September 2011

एक पल तो जी लूँ !!!

एक पल तो जी लूँ !!!



माँ तेरे नेह भरे बंधन से मुझे कतई इनकार नहीं....
तेरी प्यार भरी झिड़की, लड़की होने की असुरक्षा भावना ,
आँखों में हया,कंधे पर परिवार की मर्यादा का बोझ ,
ज़माने के बनाये उसूलो के दरमियाँ हमारी परवरिश ,
माँ !मुझे इन सब अदृश्य स्नेह डोरियो से पूरी तरह इकरार सही......
पर एक पल स्वपन में ही सही ,सपनो में बहने तो दो !!!

पक्षियों का मधुरगान,गगन में उनका उन्मुक्त विचरण,
वारिश की बूंदों के स्पर्श की सिहरन,सोंधी मिटटी से मदमस्त मन ,
नशीली हवाओ और खिलते गुलमोहर के बीच झूले की ऊँची पेंग ,
दुनिया बहुत सुन्दर है माँ !बड़ी मनभावन ,सबकी नजर से बहुत देखा,
आपकी अनदेखी कहानियो में बहुत सुना,
अब अपनी नज़र से देखने तो दे !
स्वपन में ही सही खुले आकाश में उड़ने तो दे,
एक पल ही सही अपनी जिंदगी जीने तो दे !!!

तुम आये मेरे जीवन में,मुझे तेरे प्रेमपाश से कतई इनकार नहीं,
कानो में बालियो की चमक,हाथों की चूडियो की खनक,
पांवों में पायल की रुनझुन,बालो में गजरो की मदमाती खुशबू,
सोलहो श्रृंगार में नए रिश्ते के अहसास में खुद को भूलना ,
 अपना नाम-पता मिटा तेरे नाम से जुड़ना ,
गृह लक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित कर घर की इज्ज़त का दारोमदार
आपके सारे रिश्ते सहर्ष स्वीकार है मुझे ,इससे मुझे इकरार सही,
पर एक पल के लिए ही सही देवी नहीं वनदेवी तो बनने दो मुझे !!!

पायल , कंगन ,स्वर्ण आभूषण की जकडन में
तन के साथ मन को भी तो खुलने दो ,
प्रेम को पाश नहीं, प्रेम को  प्यास ही रहने दो ,
झरनों की अठखेलियो में ,समंदर की लहरों में लहराने दो मुझे ,
राजा भरत की रानी नहीं ,दुष्यंत की शकुंतला ही  रहने दो मुझे ,
माना !फूलो की खुशबु बनना ही मेरी तक़दीर है ,
पुष्पगंध में एक भी क्षण को,मेरी आत्मा को महकने तो दो ,

दुनिया बहुत सुन्दर है !बड़ी मनभावन ,सबकी नजर से बहुत देखा,
तुम्हारी आँखों से बहुत जाना ,बहुत सुना,
स्वपन में ही सही, सपनो में रंग भरने तो दो,

एक पल ही सही अपनी जिंदगी जीने तो दो !!!

Saturday 10 September 2011

उधेड़बुन !

उधेड़बुन !

धरती से प्रथम परिचय ,
प्रभु ने कहा दुनिया बड़ी सुहानी है !
इसकी हर खुशबू में महकना ज़रूरी है ....
माँ ने बढ़ाये प्यार और सुरक्षा भरे हाथ,
समझाया दुनिया बड़ी अनजानी है !
हर कदम सम्भाल कर रखना ज़रूरी है ....
कैसी उधेड़बुन है !!!
सुन्दरता चहुँ ओर ,बुराई आदमखोर .
बड़ी देर से समझ आया !
हंस बनूँ ,जीवन के समंदर से मोती चुनु ख़ुशियो के ,
वैर छोड़ ,सुनहरी लड़ियाँ पिरोउं हर खुबसूरत लम्हों के ...


बड़े हुए, कई रिश्ते बने नए पुराने !
सुना रिश्ते भगवान की देन है,
जिसे सलीके से निभाना है.....
हर दर्द में जीकर हर जज्बे में घुलकर,
रिश्तो को सहेजना है प्यार से इकरार से....
जब निभाने की बारी आई ,
कुछ अपने पराये ,पराये अपने लगे,
कैसी उधेड़बुन है !!!
कुछ रिश्ते इश्वर की नेमत ....
तो कुछ निबाहने की जद्दोजहद ...
ज़माने ने समझाया ,

दिए की बाती बनूँ , इसके हर डोर में बंध जाऊं .....
पर अपनी लौ से कुल को आलोकित कर जाऊं ....


पढ़ा किताबो में !इश्क खुदाई है बंदगी है,
अपने अस्तित्व को किसी के लिए मिटाने की बानगी है !!
कइयो ने कहा इश्क आग का दरिया है ,
जिसमे पागलपन है ,जूनून है ,दीवानगी है !!
कैसी उधेड़बुन है !!!
प्यार अगर बंदगी है तो प्यार के दुश्मन हज़ार क्यूँ ....
कभी जात पात के बंधन कभी खाप पंचायत क्यूँ .....
बड़ी देर से समझ आया.....


प्यार परवाने की शमा के लिए मिटने की प्यास है !
विरह हो तो मिलने को तरसते हैं ,मिलन हो तो जलकर मरते हैं !!!


इतिहास पुरातत्व की कहानी है ,
अपने पुरखो की नयी पीढ़ी की जुबानी ...
इसमें हिटलर को दानव
और गाँधी को देवता बनाने की शक्ति है,
अतः दूसरो को सीढ़ी बना खुद उंचाई पर चढ़ना ही सच्चाई है...
ताजमहल उसे बनाने वाले मजदूरों की नहीं ,
शाहजहाँ के प्यार की गहराई है ........

कैसी उधेड़बुन है !!! पर अब समझ आया....

खुद का नाम बनाने से बड़ा है अपनी पीढ़ी का निर्माण .....
वही असली धर्म है और वही है सच्चा निर्वाण ......


धर्म !सत्य की राह में कितने भी रोड़े आयें
अधर्म का साथ छोड़ उस डगर पर चलने का नाम है ....
विभीषण ने राम के लिए सर्वस्व लुटाया ,
माँ - बाप , भाई - बहन सबको ठुकराया ....
कृष्ण अर्जुन के सारथि थे लेकिन ,
अर्जुन ने निहथ्थे कर्ण पर बाण चलाया ....
फिर से वही उधेड़बुन ,वही प्रश्न !!!
अगर प्रभु सत्य के साथ हैं तो बिभीषण बदनाम क्यों ?

अर्जुन पूज्य और हमें उसकी भक्ति पर अभिमान क्यों ?
अब समझ आया !

पांडवो की कौरवो पर जीत ,पृथ्वी से दुष्टों की समाप्ति के लिए था ...
विभीषण का धर्मयुद्ध लंका राज्य और मंदोदरी की प्राप्ति के लिए था ....
धर्मयुद्ध निस्वार्थ हो तो पूजनीय है,अगर सत्ता  हेतु हो तो निंदनीय है !!!

इश्वर !निर्गुण रूप में अनंत है ,
ब्रम्ह है , शाश्वत है निसंग है !
सगुन रूप में प्रभु घट घट में है ,
सागर में , अम्बर में , दिगंत में !
हर कर्म बुरा हो या भला समर्पित कर दो उन्हें
"त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पये "
फिर वही उधेड़बुन ,असमंजस में हूँ !
अगर हर कर्म का सञ्चालन तेरे हाथो में है
तो इतनी आतंकशाही , इतनी बर्बादी का आलम क्यों ...
नफरत की आग में इंसान इतना वहशी और पागल क्यों ....
अब समझ आ रहा है हमें ....
इश्वर ही धुरी है हमारे सब कर्मो की !ये सच है ...
पर हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है

समर्पण पुष्पों का हो तो जिंदगी से खुशबु मिलेगी
अगर  समर्पण  नफरत का हो तो कांटे बिछेंगे राहों में
स्वर्ग नरक सब झूठे हैं ,इसी धरती पर पाप और पुण्य है
जिसने इसे समझ लिया वही मनुष्य धन्य है !!!!


Monday 5 September 2011

आइना !!!

आइना !!!

दुनिया जो भी समझे हम जो भी बनना चाहे
शीशे में हमारे अक्श  बयां कराता है आइना .....

दिल में दर्द का समंदर है ,
निराश विचारो का बबंडर है
चेहरे पर हंसी है ,
सुखी होने के मुखौटे हैं , ख़ुशी है ,
जब आस पास कोई ना हो ,एकांत में बैठे हों
अपने गम से रूबरू कराता है आइना .....

मन  में ओछापन है ,
दूसरो से हम ऊपर है ,दिखाने की ,
लच्छेदार बातो से अपने वाक् कौशल जताने की ,
उनके कर्मो पर गौर करे ,
अपने कर्मो से उनके विचार दिखाता है आइना ........

घर में रोज झगडे है ,रिश्तो का कोई मोल नहीं ,
समाज में भलेमानस में गिनती है,
बुद्धिजीविता जिनकी रोजी रोटी है,
उनके बच्चो के समाज में आचार- विचार से ,
घर के संस्कार दिखाता है आइना ......

सभा में सफ़ेद वस्त्र सबके हैं ,
हंस और बगुले का अंतर भी नहीं पता,
जब बोलने की बारी आती है ,
कौवे और कोयल का फर्क बताता है आइना ...

मंदिरों- गुरुद्वारों में दानवीर कर्ण बनते हैं ,
गरीबो का पैसा लूट ,उनमे बाँट मसीहा कहलाते है ,
मरण शय्या पर यमदूतो के सामने 
अच्छे बुरे कर्मो का लेखा जोखा कराता है आइना .....

प्यार !!!



प्यार !!!
प्यार ! मन्दाग्नि है पल पल जलाती है ,
मैं विरह में तप तप के कुंदन बनी .....
प्यार ! तन मन के बिखरने का नाम है ,
मैं चमन की फिज़ाओ में घुल घुल चन्दन हुई ....
प्यार !प्यास है ,इंतज़ार है ,तड़पता रूहानी रिश्ता है ,
मैं वारिश की बूंद बनी ,सीप में ढल कर मोती बनी ....
प्यार !दर्द का दरिया है ,डूबते उठते जज्बातों की 
मैं दर्द की हद से गुजरकर दर्द की दवा बनी ......
प्यार !जिसमे दो पाटो के बीच पिसना होता है ,
मैं तेरे प्रेम में सुर्ख रंग की हिना बनी .....
प्यार !एक तराना है जिसके हर संगीत में तू है ,
मैं तेरे साज से निकलती मधुर सरगम बनी .....
प्यार !जिसके कई रंग है ,खुशरंग है तो बदरंग भी
मैं तेरे रंग में सतरंगी इन्द्रधनुष बनी .....
प्यार !आस्था है ,विश्वास है ,पावन अहसास है ,
प्यार !जिसमे मिलन नहीं तो अधूरापन भी नहीं ,
प्यार !स्वयं में पूर्ण है सारी सीमाओ और बंधन से परे है ,
प्यार ! रीत है इंसान को भगवान बनाने की ,
मेरे श्याम !प्रिया तेरी प्रीत में जोगन बनी ......... 
(The Great Sayings of the Upanishads)

      पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
          पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥)

Sunday 21 August 2011

कृष्ण तेरे कितने रंग !!!

कृष्ण तेरे कितने रंग !!!

श्याम वरण काया, निर्मल है तन- मन,
अद्भुत तेरा शैशव, नटखट है बालपन.....
देवकी के पुत्र किशन, जन्म कालकोठरी में
यशोदा का लाडला , करे लाड़ गोकुल में ....
पूतना का वध हो या कालिया का मर्दन,
माखन चुराए या उठाये गोवर्धन .....
मां के दुलार में सराबोर हुआ बचपन,
राजकुंवर ग्वालो से जताए अपनापन .....

पुत्र की लीला से ,पुलकित है अंग अंग ,
हर मैया पूछे ! माखनचोर तेरे कितने रंग !!!

जिन गोपियों के बीच कान्हा रास रचाए,
वही गोपियाँ ,उद्धव को भक्ति पाठ पढाये......
सोलह हजार रानियां मंडराए चहुँओर,
राधा के पावन प्रेम का पुजारी ! चितचोर.....
इतनी नारियो के बीच सभी भोगी कहलायें
रंगरसिया श्याम, फिर भी योगी कहलाये .....

प्रेम भी उद्दात है ,जब हो भक्ति के संग,
चकित है मीरा !मनमोहना तेरे कितने रंग !!!

बाल सखा सुदामा से सखा-धर्म निभाए,
भरी सभा में, द्रौपदी को चीर-हरण से बचाए.....
कुरुक्षेत्र में पार्थ का ,कभी सारथि बन जाए,
बंधू-बांधव प्रेम में जब भटके वही अर्जुन ,
अपने बृहत् रूप में गीता का ज्ञान दे जाये......

ईश्वर का प्रतिरूप माधव ,फिर भी तू अलंग,
भक्त तेरे दंग है ! हृषिकेश तेरे कितने रंग !!!

विधर्मी से धर्म के लिए लड़ना बताया,
साम-दाम दंड भेद से,धर्मयुद्ध जीतना सिखाया....
जीवन में निस्वार्थ निष्काम कर्म करना बताया,
पुत्र-प्रेम,भातृ-धर्म ,प्रेमगीत हो या राजनीति,
सर्व-धर्म को सभी रूपों में पग-पग निभाया.....
हर रस में भींज रिश्ते को पूजना सिखाया.....


किस रिश्ते से लगाऊ लगन,अनूठे तेरे हर रंग,
बाबरी हुई तेरी प्रिया ! मेरे कान्हा तेरे कितने रंग !!!


 (जन्माष्टमी के पावन अवसर पर,सांवरे श्याम से प्रिया के कुछ अनुत्तरित प्रश्न !!!)

Saturday 13 August 2011

फिर भी हम स्वतंत्र है !!!



फिर भी हम स्वतंत्र है !!!

आजादी की हर सालगिरह पर
हम स्वतंत्रता का जश्न मनाते है ....
जिनके गुलाम थे जिन्होंने गुलामी दी ,
उन्हें हम अतिथि बनाकर देश बुलाते है ....
आज भी रानी के प्रशंसा के
कसीदे काढ़े जाते है .....
उनके राजकुमार की शादी हो या
ताज के पास तस्वीर उतरवाना,
हम मुखपृष्ठ पर समाचार बनाते है .....
अपनी मातृभाषा को भूलकर ,
अंग्रेजीदां होना अपनी आधुनिकता बताते है.....
पुरातन आदर्श-भरी संस्कृति छोड़कर
उनकी विलासिता अपनाने में गर्व जताते है ....
शहीदों की समाधि पर उनके पुष्पार्पण को
आज की ताज़ा खबर बनाते है....
सोचते है हमारी आजादी का यही मतलब है !!!

वैचारिक गुलामी है,मन से परतंत्र हैं,......
खुशियों का अवसर है,फिर भी हम स्वतंत्र हैं ........

वैश्वीकरण की दौड़ में ,
अपनी स्थिर अर्थव्यवस्था को धत्ता बताकर,
"ऋणं लेकर घृतं  पीवेत " की चरक प्रवृति
को विकसित होने का मूल मंत्र बताते हैं.....
गरीबी और भूख से कई विदर्भ बने पर,
कॉमन-वेल्थ खेल में करोडो लुटाने में ,
देश और भारतीयता की शान बताते हैं....
बेटो की चाह में कई बेटियां कुर्बान कर के ,
बालिका मुफ्त-शिक्षा योजना चलाते हैं.....
आर्थिक ,सामाजिक ,शारीरिक शोषण कर
"यत्र नार्यस्ते पूजते तत्र वसते देवता "
के हमे गीत सुनाते हैं.....
भाई -भाई में झगड़े है,मर कटने का फसाना है,
अहम् की लड़ाई में देश के टुकड़े करने का अफसाना है,

समाज में कई बेडिया हैं,अपना श्रेष्ठ प्रजातंत्र है.......
आजादी के तराने छेड़ो,फिर भी हम स्वतंत्र हैं.............

शहीदों के मर मिटने की शहीद-वाणी ......

भारतीयता का जज्बा कायम अगर रखना है,
भारत को गर दुनिया में विकसित देश बनना है,
कश्मीर से कन्याकुमारी  अखंड  अगर करना है,
भारतीय संस्कृति का परचम दुनिया में लहराना है !

आपस में लड़े नहीं सबमें भाईचारा हो,
सर्व- धर्म समभाव हमारे देश का नारा हो ,
देश की बागडोर शिक्षित युवाओं के हाथ हो,
न्यायपालिका सदा निष्पक्ष और अपने साथ हो,
परमाणु की दौड़ में हम ना अग्रसर हों,
रोटी ,छत ,पानी सब के घर- घर हो,
मुफ्त शिक्षा, ईमानदारी हम सब की रीत हो ,
 सबके दिलो को जीतना सब से बड़ी जीत हो,

गाँधी,सुभाष की कुर्बानी का यही मूलमंत्र है,
गर्व से हम बोलेंगे ,हाँ ! हम स्वतंत्र हैं !!!

Friday 12 August 2011

मेरा प्यारा भैया !!!

मेरा प्यारा भैया !!!

मेरा भैया,मेरा वजूद !!
बचपन में साथ बीते -
हमारे छोटे- छोटे सुनहरे पल,
हमारी मीठी प्यारी तकरार,
झूठी बातो पर पापा से शिकायत लगाकर,
एक दूसरे को डांट खिलाना ,
फिर अपनी हार जीत का जश्न मनाना....
पड़ोस में बच्चो के बीच नोक -झोंक हो तो
हमारे साथ मिल हमारे लिए प्रेम दर्शाना,
आज वो सब सपना है,फिर भी वो समय मेरा कितना अपना है .......
मेरा नन्हा भैया,मेरा पहला साथी !!!!!

हर वक़्त पापा के नख्शे-कदम पर
कदम कदम पर अपने भाई होने का अहसास दिलाना,
अकेले कही हमें जाना हुआ तो
साथ चलकर हमें सुरक्षित महसूस कराना,
राखी में रक्षा सूत्र बंधवाते समय,बड़ी बड़ी बाते करना
सुबह से भूखे रहकर राखी बंधवाने से
मम्मी से पैसे लेकर हम बहनों को बांटने तक,
हमें जिंदगी भर साथ निभाने के लम्बे-लम्बे वादे करना
शाम में फिर से हमारे बीच वही पुराने हम-तुम के झगडे,
तब हुमायू और कर्णावती की कहानी  कितनी  झूठी लगती थी ,
आज सब पुरानी बाते है,पर हमारे लिए वो परियो की कहानी है........
मेरा नन्हा भैया,हमारा पहला सुरक्षा चक्र !!!!

जब पापा -मम्मा की जिम्मेवारिया बढ़ने लगी,
 तुम्हारा तुरंत से समझदार हो जाना,
सामने से अपना दाहिना हाथ बढाकर
उनके कंधे को एक मजबूत सहारा देना,
अपने घर में कोई छोटी -बड़ी बात हो,
किसी सदस्य को कभी मानसिक ,आर्थिक जरूरत हो
तुम्हारा अटल चट्टान सा खड़े रह उसे सम्हालना,
हर गिरते कदम को सहारा देकर थामना ,
तू हमारे लिए हमारा मानसिक संबल है,हमारी आशा हमारा मनोबल है ...........
मेरा दुलारा भैया!  मेरे परिवार का नाज !!!!

आज हम सभी भाई -बहनों की अपनी छोटी दुनिया है,
कई नए रिश्तो से हमारी प्यार भरी डोर बंधी है,
रोज नयी परशानी और जिंदगी को अच्छे से निभाने की भागदौड़ है
इन सब के बीच तेरे साथ होने का अहसास ,
एक पूर्णता है हमारे परिवार की ......
भैया ! आज फिर से वही राखी है,
और  हम दोनों बहनों को तेरा वही ऐतवार है
हमारे दिल को बड़ा सुकून है , तू हमारा  भाई है
भगवान् ने कई रिश्ते बांटने में कंजूसी की हो
पर ये हमारी खुशनसीबी है,हम शुक्रगुजार है उनके,
उन्होंने इस रिश्ते में हमें सब कुछ दिया है!

ईश्वर करे तेरे जीवन में खुशियों के वर्ष हज़ार हो......
हम भाई बहनों का आपस में ताउम्र निस्वार्थ प्यार हो .......
मेरा प्यारा भैया,तुम्हे हमारा असीम प्यार !!!!





Wednesday 3 August 2011

आओ तो सही !!!

आओ तो सही !!!


हरी वादियो की धानी चुनर लिए,
सरसों के फूलो सा प्यार लिए,
कोयल की कूक की मिठास लिए,
परवाने के जलने की प्यास लिए,
इंतजार में उन्मत हूँ,
मेरे प्यारे प्रियवर ,तुम आओ तो सही ............

निर्झर की मनुहार लिए,
अटल हिमालय सा विश्वास लिए,
दमकते महुए का उन्माद लिए ,
महकते फूलो का श्रृंगार किये,
आकुल हूँ बेकल हूँ ,
मेरे प्यारे प्रियवर तुम आओ तो सही .................

रात की स्याही का अंजन लिए,
उषा की लालिमा का रुखसार लिए,
पुरवैया हवा सी बहार लिए,
पूर्णमासी के चाँद का दर्पण लिए ,
कब से प्रतीक्षारत हूँ,
मेरे प्यारे प्रियवर दरश दिखाओ तो सही......

सावन की घटाओ का गेसू लिए,
फाल्गुन की मस्ती का रंग लिए,
वसंत की उमड़ती उमंग लिए,
हेमंत की ठहरी तरंग लिए,
सदियो से आशारत हूँ,
मेरे प्यारे प्रियवर प्रीत लगाओ तो सही........

मीरा कहे श्याम से ,अहिल्या श्रीराम से,
धरा कहे गगन से, पुष्प कहे चमन से,
आकाश कहे क्षितिज से, सीप कहे मोती से,
प्रिया कहे प्रभु से, सावरे घनश्याम से,
दिल की लगी बुझाओ तो सही ,
मेरे प्यारे प्रियवर तुम आओ तो सही ..........

इंतजार ही शाश्वत सत्य है !
तभी पूजा होती है ,
मीरा की लगन और पाषाण अहिल्या के संयम की .....
तभी इतिहास बनता है,
राधा के किशन से सच्चे पावन प्यार का......
विरह में मिलन है ,ह्रदय प्रेमाकुल है,
जनम मरण की आस मिटाओ तो सही ,
मेरे प्यारे प्रियवर तुम आओ तो सही .......


Wednesday 27 July 2011

एक दिया भी काफी है....

एक दिया भी काफी है....

विशाल समन्दर, अथाह लहरे
भटके मुसाफिर,जमीं की तलाश में
इस वीराने में,रात के अंधियारे  में
एक प्रकाश स्तम्भ भी काफी है मंजिल दिखाने को ........

झूठे बड़प्पन में अपने अहम् में
फलदार वृक्ष अकडते नहीं ,
ताड़ कभी झुकता नहीं
समझ समझ का फेर है वर्ना ,
एक क्षमा भी काफी है बिगड़ी बनाने को ............

भयावह  तिमिर और रस्ते की थकन
डर डर जाये जिया,वन में मै जाऊ कहाँ
इस आशियाने में ,अनजाने सफ़र में
एक जुगनू भी काफी है रौशनी दिखाने को ........

पूर्वजो की इशवाणी है
सीखते है हम गगन में उड़ना,जल में तैरना
पर सिखा नहीं हमने जमीं पर चलना
जीना सिखाने को ,इंसान बनाने को
एक गुरु भी काफी है अज्ञान मिटाने को .......

कभी दिल की लगन है कभी रस्ते की तपन है
कभी तृषित मन है कभी ऊँची उड़ान की थकन है
दुनिया रंगीन है और हंस के जीने को
एक खुशनुमा याद  भी काफी है जिंदगी बिताने को ........

बचपन से माँ -पिता ने गले से लगाया
सच्चे और झूठे का अंतर सिखाया
त्याग से प्यार से हमें अच्छा इंसा बनाया
एक पुत्र भी अच्छा हो जो खुशिया दे पाए
एक कुलदीपक भी काफी है पूर्वजो का नाम बनाने को ....

चौरासी योनि का लम्बा सफ़र है ,
जीव और जीवन का हर पल मिलन है
कठिन है रास्ता और अनजान राही है
कहने को पुनर्जन्म भी एक सच्चाई है मगर
एक जनम भी काफी है आत्म तत्व को पाने को ............

Saturday 23 July 2011

सच तो यही है !!!!!

सच की सच्चाई !!!!!

चोरी किसी के दिल की हो ,
तन की -मन की ,सभा में वचन की हो
या मिहनत से बचाए किसी के धन की हो ,
   चुराया तो है ही ना ,सच तो यही है ......

प्यार राधा का किशन से ,प्रेमी का प्रेमिका से
मां का बच्चे से ,शहीदों का देश से हो ,
आंसू की ख़ुशी ,इंसानों का इंसान
औ भक्त का भगवान् से हो
प्यार में दिल का धडकना तो है ही ना ..सच तो यही है.....

दुःख अनसुलझे जज्बातों से मिले,
जनम- फल या कर्म-फल से ,
बच्चे से जीवन दात्री को मिले
या मजबूत तबके से गरीबो को,
सिला दूसरो से मिला हो या अपनों से 
 दुःख में तड़पन तो है ही ना,सच तो यही है......

स्वार्थ अपनों को बचाने का हो
परिवारवाद ,समाजवाद
या समग्र समाज के उत्थान का हो
  स्वार्थ में अंधे तो सभी है ना ,सच तो यही है ......

दोस्ती हमसफ़र से हो,हमराही से
सम दर्शी इंसानोंकी हो,मिलते विचारो की
कृष्ण की सुदामा से हो ,राम की विभीषण से
 दोस्ती में प्रेमभाव तो है ही है ना,सच तो यही है.......

ख़ुशी मिलन में हो,पूर्ण समर्पण में हो या तन्हाई में ,
त्याग में या किसी को दुःख पहुचाने में हो ,
या दधिची की तरह देवताओ के लिए
अपना सर्वस्व लुटाने में हो
 ख़ुशी में आनंद तो है ही ना,सच तो यही है .......

कबीर की कबीरवाणी !!!
हे सावरे श्याम ! अपने रंग में इस कदर रंग दे मुझे ,
कि तेरे सिवा कोई और रंग ना चढ़े मुझपर ,
ना अगले जनम की आस हो ,ना जनम मरण की प्यास ,
नेह  आत्मा का शरीर से हो या शरीर का आत्मा से ,
स्नेह में परमानन्द तो है ही है ना,सच तो यही है........

Thursday 21 July 2011

ये ही तो है जिंदगी....

ये ही तो है जिंदगी....

हमारी जिंदगी !!!
आत्मा के कई जन्मो का सफ़र है
जिसके न आदि का पता है ना अंत का
एक अंतहीन सफ़र है जिन्दगी ......

इस छोटे से काल में काल के
काल में कितने काल-कलवित  हुए
उनके नामोनिशान भी मिट गए
फिर भी रोज नयी उमंग
जगाती है जिंदगी.....

रोज नए रिश्ते बनते बिगड़ते है
देश और सरहद के झगडे होते रहते है
इंसानों से इंसानियत की मौत होती है
सारे रिश्ते इसी जनम में जमी पर रह जाते है
फिर भी प्यार करना सिखाती है जिंदगी........

पुरानी पीढ़ी और नई उम्र में अजब कशमकश है
बेमेल विचारो   की   जबरदस्त   जद्दोजहद है
ओल्ड age होम आधुनिक जरुरत है
क़ल हम भी उसी रस्ते पे होंगे
ये मालूम है मगर
अपनों को अपनों से बेगाना बनाती है जिंदगी.....

सुना है लोगो ,से पढ़ा है किताबो में
महापुरुषों के छोड़े पदचिन्ह हम मिटा न सके
क्युकि हम नया पदचिन्ह बना न पाए
पूर्वजो का कर्म फल हमने जी भर के लुटा
नयी संतति को थाती में
खुरचे भी देने में डरते है
स्वार्थ में हमें अँधा बनाती है जिंदगी.......
           
 इबादत है हमारी !हमारे संचालक से
छोटे जीवन की नैया हम अच्छे से खे पाए ,
नाविक की मर्जी और आत्मा की पतवार से
हर तरफ फूल न सही फूलो के बीज ही बिखेर पाए,
हम ना सही दुनिया ही कहे
सार्थक हुई हमारी ये जिंदगी...........

Saturday 16 July 2011

राजनेता

हमने देश की नैया की जिनके हवाले,
हमारे मातम पर वो गुनगुनाते रहे .....
अपनों का हो या आतंकी का हमला ,

 हम रोते रहे वो रुलाते रहे .......
विदेशो में रखकर गरीबो का पैसा ,

समाजवाद के गुण गाते रहे .....
शहीदों के नाम पर कुर्सी पर बैठे,

देशभक्ति के तान सुनाते रहे.....

दिल के रिश्ते

नेता !!!

मिथ्या वचन
जिसके जीवन की गीता .......

आंखे !!!

लोगो के नाम
दिल का पैगाम.....

प्यार !!!

एक सुखद अहसास
एक अटूट विश्वास.....

रिश्ते!!!

लोगो की जुबानी
दो दिलो के जुड़ने की कहानी ......

पुत्री का खुला पत्र पिता के नाम

पुत्री का खुला पत्र पिता के नाम

पापा !!!

कैसे  लिखू -दिल की पाती,

इतना कुछ है  लिखने को कि ......

 सदिया बीत जाएँगी  !!!

जब से होश  संभाला  है ……..

हर  पल  आपका  हाथ 

  अपने  सर  पर   पाया  है .........

बचपन  में  छोटी  छोटी  गलतियों  पर  डाटना 

अब  लगता  है  कितना  जरुरी  था .....

 धैर्य  से  हमें  कहानियो  के  जरिये  

जिंदगी  का  पाठ  पढाना ,

अब  महसूस  करते  है  कितना  सटीक  था......

पापा  उसने  ही  सदा  हमें  हमारी

 जिंदगी    जीना  आसान  कर  दिया  है .......

जब  कभी  तन्हाइओ     में  ,

वक़्त  के  थपेड़ो    से ,

उमड़ती    कठिनाइओ  के  लहरों  से ,

हमारे  जीवन  की  कश्ती  डगमगाने  लगी --

आपके  प्रेम  भरी  निगाहों  ने ,

आपके   प्रेरक  मजबूत  सहारे  ने ,

हमारे  जीवन  की  डूबती नैया  

किनारे  उतारी  है .........

 पापा  आज  अगर  पीछे  मुड़कर     

देखती  हूँ    तो  हर  ख़ुशी  

  आपकी  अमानत  है .....

आज हमें  अपनी  जिंदगी  से  कोई  शिकायत  नहीं  रही  है ....

क्यूकि  आपने  she stooped to conquer का  पाठ  पढाया  है.....

कहते  है  पिता  जम्दाता  होते  है !!!

पर  पापा   हमारे  जन्मदाता  ,सुखदाता ...

कर्मदाता  ,अटूट  संबल सब  कुछ  तो  आप  ही  है ....

मेरे  प्यारे  पापा  !!!!!

सुना   है  दुनिया  में  भगवान  होते  है -

 इश्वर  से  तो  मांगना  पड़ता     है

पर  आपने  तो  बिना  मांगे  ही

हमें  सब  कुछ  दिया  है ................

दुआ है  तहे  दिल से 

 आप  सदा  हमारे  साथ  रहे ...........

अगले  जनम  में  कोई  रिश्ता  साथ  हो  ना  हो

हमारे माता पिता आप रहे  .......

I love u Papa