कृष्ण तेरे कितने रंग !!!
श्याम वरण काया, निर्मल है तन- मन,
अद्भुत तेरा शैशव, नटखट है बालपन.....
देवकी के पुत्र किशन, जन्म कालकोठरी में
यशोदा का लाडला , करे लाड़ गोकुल में ....
पूतना का वध हो या कालिया का मर्दन,
माखन चुराए या उठाये गोवर्धन .....
मां के दुलार में सराबोर हुआ बचपन,
राजकुंवर ग्वालो से जताए अपनापन .....
पुत्र की लीला से ,पुलकित है अंग अंग ,
हर मैया पूछे ! माखनचोर तेरे कितने रंग !!!
जिन गोपियों के बीच कान्हा रास रचाए,
वही गोपियाँ ,उद्धव को भक्ति पाठ पढाये......
सोलह हजार रानियां मंडराए चहुँओर,
राधा के पावन प्रेम का पुजारी ! चितचोर.....
इतनी नारियो के बीच सभी भोगी कहलायें
रंगरसिया श्याम, फिर भी योगी कहलाये .....
प्रेम भी उद्दात है ,जब हो भक्ति के संग,
चकित है मीरा !मनमोहना तेरे कितने रंग !!!
बाल सखा सुदामा से सखा-धर्म निभाए,
भरी सभा में, द्रौपदी को चीर-हरण से बचाए.....
कुरुक्षेत्र में पार्थ का ,कभी सारथि बन जाए,
बंधू-बांधव प्रेम में जब भटके वही अर्जुन ,
अपने बृहत् रूप में गीता का ज्ञान दे जाये......
ईश्वर का प्रतिरूप माधव ,फिर भी तू अलंग,
भक्त तेरे दंग है ! हृषिकेश तेरे कितने रंग !!!
विधर्मी से धर्म के लिए लड़ना बताया,
साम-दाम दंड भेद से,धर्मयुद्ध जीतना सिखाया....
जीवन में निस्वार्थ निष्काम कर्म करना बताया,
पुत्र-प्रेम,भातृ-धर्म ,प्रेमगीत हो या राजनीति,
सर्व-धर्म को सभी रूपों में पग-पग निभाया.....
हर रस में भींज रिश्ते को पूजना सिखाया.....
किस रिश्ते से लगाऊ लगन,अनूठे तेरे हर रंग,
बाबरी हुई तेरी प्रिया ! मेरे कान्हा तेरे कितने रंग !!!
(जन्माष्टमी के पावन अवसर पर,सांवरे श्याम से प्रिया के कुछ अनुत्तरित प्रश्न !!!)
श्याम वरण काया, निर्मल है तन- मन,
अद्भुत तेरा शैशव, नटखट है बालपन.....
देवकी के पुत्र किशन, जन्म कालकोठरी में
यशोदा का लाडला , करे लाड़ गोकुल में ....
पूतना का वध हो या कालिया का मर्दन,
माखन चुराए या उठाये गोवर्धन .....
मां के दुलार में सराबोर हुआ बचपन,
राजकुंवर ग्वालो से जताए अपनापन .....
पुत्र की लीला से ,पुलकित है अंग अंग ,
हर मैया पूछे ! माखनचोर तेरे कितने रंग !!!
जिन गोपियों के बीच कान्हा रास रचाए,
वही गोपियाँ ,उद्धव को भक्ति पाठ पढाये......
सोलह हजार रानियां मंडराए चहुँओर,
राधा के पावन प्रेम का पुजारी ! चितचोर.....
इतनी नारियो के बीच सभी भोगी कहलायें
रंगरसिया श्याम, फिर भी योगी कहलाये
प्रेम भी उद्दात है ,जब हो भक्ति के संग,
चकित है मीरा !मनमोहना तेरे कितने रंग !!!
भरी सभा में, द्रौपदी को चीर-हरण से बचाए.....
कुरुक्षेत्र में पार्थ का ,कभी सारथि बन जाए,
बंधू-बांधव प्रेम में जब भटके वही अर्जुन ,
अपने बृहत् रूप में गीता का ज्ञान दे जाये......
ईश्वर का प्रतिरूप माधव ,फिर भी तू अलंग,
भक्त तेरे दंग है ! हृषिकेश तेरे कितने रंग !!!
विधर्मी से धर्म के लिए लड़ना बताया,
साम-दाम दंड भेद से,धर्मयुद्ध जीतना सिखाया....
जीवन में निस्वार्थ निष्काम कर्म करना बताया,
पुत्र-प्रेम,भातृ-धर्म ,प्रेमगीत हो या राजनीति,
सर्व-धर्म को सभी रूपों में पग-पग निभाया.....
हर रस में भींज रिश्ते को पूजना सिखाया.....
किस रिश्ते से लगाऊ लगन,अनूठे तेरे हर रंग,
बाबरी हुई तेरी प्रिया ! मेरे कान्हा तेरे कितने रंग !!!
(जन्माष्टमी के पावन अवसर पर,सांवरे श्याम से प्रिया के कुछ अनुत्तरित प्रश्न !!!)
6 comments:
Seeing Your great effulgent and various-colored form touching the sky; Your mouth wide open and large shining eyes; I am frightened and find neither peace nor courage …….My life belongs the Lord Krishna now. I'm just the servant of Krishna. I've never been so humble in all my life, and I feel great…….A very nice ,devoting and heart touching poem..this poem effected on the deepest core of my heart..the words of this poem are shining like in my eyes thousands of pearls and diamonds…feeling refreshed..very soothing effecting poem priya… I really luv this poem....
I was just waiting that why u r not uploading any poem now a days?It's awesome really very nice..
All charming people have something to conceal..a very nice poem as always..
Thanks samikhsha and sonu for your beautiful comments.Happy Janmashtami!!!
very nice poem really good.
Thanks Ruby !!!
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