Tuesday 17 September 2013

क्या फायदा...

जब जख्म पिघल आंसू बन गए, दर्द पर मरहम लगाने से क्या फायदा...
जब सब्र का पैमाना छलक सा गया,उस पे शब्दों का बाँध बनाने से क्या फायदा...

हम बच्चो के जेहन में जहर घोल गए,मिथ्या बातो से उन्हें बहलाने लगे,
जब वो बड़े हुए ,झूठी विरासत मिली, सच का महल बनाने से क्या फायदा..

आलम ऐसा भी था,हमारा सानी ना था,देश -विदेशो में भी हमसे कोई ज्ञानी ना था ...
हमने पश्चिम सभ्यता का ज्ञान लिया,भोगवादी संस्कृति को महान किया...
जब साँझ वेला ढली,वृद्धाश्रम घर बन गया , नयी पीढ़ी को कोसने से क्या फायदा...

जहर डूबा कर बातो का तीर चला दिया, तीखी बातो से सीना छलनी कर दिया...
जब खून खून में फरक का चलन चल गया,स्वस्थ समाज का आदर्श बघारने से क्या फायदा ...

वन के फूलो से अपना याराना बढ़ के था,उनके आँचल में हर दिन संवर जाते थे,
हमने उनको भी जड़ से जुदा कर दिया,कंक्रीट जंगल हमें रास आने लगे,
जब जंगल भी पीछा छुड़ाने लगे,बेमौसम आग हमपे बरसाने लगे,घर में बागवान लगाने से क्या फायदा...

तमन्ना थी ना खुदा से कोई फरियाद हो ,अंत समय में ना शिकवा शिकायत भी हो...
ताउम्र ,तन को हम बस सजाते रहे, स्वार्थ माया में खुद को भुलाते रहे..
जब उम्र बीत गयी,आतम रीता रहा ,तीरथ में धुनी रमाने से क्या फायदा ....
                                                                               
  (25.08.13)

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