Monday 30 January 2012

एक छोटी सी फ़रियाद !!!


जब जिंदगी ने धरती का प्रथम स्पर्श किया,
अधखुली आँखों से दुनिया दिखी मुझे ,
आंसू   शिशु के प्रथम रुदन में उभरे,
शिकायत की उनसे,जो जगद्पिता  हैं,
मुझे  खुद से जुदा क्यों किया
जब मैं तुम्हारी थी, तू मुझमे समाया है
फिर मिलन के बाद ऐसी जुदाई क्यों,
नए रूप में धरा पर मेरा अवतरण क्यों,
तू समझता क्यों नहीं ,
तू ही तो मेरी दुनिया है,
कई जन्मो में घिस घिस कर तू मिला है मुझे
अब मुझे खुद से दूर मत कर,
तुमने समझाया मुझे,
आत्म और आत्मा का जुडाव,
मानव रूप में जाकर अपने लिए पुण्य संचित करू,
तभी तो हमारा मिलन फिर होगा ,
तुमने  उस समय मेरी एक ना सुनी,
तुम हँसते रहे हम शिकवा करते रहे !!!

नए रिश्ते मिले,नयी माया जुडी,
खून के रिश्तो से अपनापन बदने लगा  ,
अपने परायो की परिभाषा मिली,
दिल उसी ममता में तन मन से रमने लगा ,
विदा की घडी पुनः आन पड़ी,
फिर शिकवा तुम्ही से,शिकायत भी तुमसे,
जन्म ही दिया तो पुरुष रूप में देते,
कमसे कम खून के रिश्तो से अलगाव  तो ना होता,
अपना घर छोड़ अनजान हमसफ़र से नाता तो ना जुड़ता ,
तुम फिर मुझे समझाने लगे,
लड़की तुलसी है,बिरवा है,
जिसका जनम कही भी हो,
पर पूजा किसी के आंगन में ही होती है.,
मै समझती कैसे,मेरी बाते जारी थी,
अब मुझे अपनों से दूर मत कर,
पर तुम तो मेरी सुनते नहीं,
तुम रुलाते रहे हम फ़रियाद करते रहे !!!


कही पढ़ा था मैंने ,
अबला जीवन हाय  तेरी यही कहानी,
आचल में है दूध और आँखों में पानी,
एक कहानी यही  ख़त्म हो जानी थी
 पुनश्च !
पर तेरी कहानी तू ही जाने,
तुम्हे मुझे   तपा कर कुंदन जो बनाना है,
मिलन औ  विरह से मेरा नाता जो पुराना है,
मेरी शिकायत चलती रही,
वही तो मेरी दुनिया है ,
मुझे उससे दूर मत कर,
नए रिश्ते सजाये है मैंने,
नए सपने बसे है इन आँखों में,
तुमने समझाया मुझे ,
मैंने तुम्हे जनमते जिनके हवाले किया है,
मैं उन्ही में तेरा रूप देखू..
इस जनम में मुझे भी जो जिम्मेवारी सौपी है तुमने
अपने वजूद को सँवारने की,
उसे निभाना जो है मुझे,
मेरा तेरा दिया रिश्ता वही है,
बाकी रिश्ते समाज के है,
 दुःख सुख की कोई परिभाषा नहीं,
जब तक साँस है वही सुख है,
मूंदहु आंख क़तऊ  कोऊ नाही
सच यही है,अपने मंजिल से ना भटकू,
तो शिकवा क्या,और शिकायत कैसी
तुम  हँसते रहे,हम शिकायत करते रहे.....

पर आज मुझे समझ आ रहा है,
तुम भी तो सोचते होगे,
अगर मेरे जीवन की नैया तेरे हवाले है
और  तुझपर मेरा अटूट विश्वास है
तो कदम कदम पर तुमसे शिकायत क्यों
कभी तुम मेरे सबसे  अपने थे,
कभी खून के रिश्तो को मैंने अपना माना,
कभी नए रिश्ते से अपने सपनो की डोर बाँधी,
जब तुमने मुझे जुदा किया है खुद से
 कोई तो तेरा मकसद होगा,
तो हर कदम पर तुमसे मेरा सवाल क्यों,
बस आँखों में नयी उमंगें सजाऊ,
हर रात के बाद देदीप्यमान सूरज की आस लगाऊ,
तुमने जिस पथ पर छोड़ा है मुझे ,
राहगीर बदल भी जाये तो कोई गम नहीं,
तेरे मेरे मिलन की शाश्वत सच्चाई ही मेरी मंजिल है
इसी सपने को अपनी तकदीर बनाऊ......

तो हे मेरे खुदा !
अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं करनी,
तेरा हर फैसला मुझे तेरे और करीब लाता जा रहा है
पर एक फ़रियाद फिर से है मेरी
इस नए सवेरे की शाम मत करना,
बड़ी  मुश्किल से फिर से  सजाये है नए ख्वाब,
बिखरे रिश्तो को सहेजकर फिर से ताना बाना  बुना है मैंने
बस मेरी छोटी सी फ़रियाद सुन ले साईं
अबलो नशानी अब ना नशैयों


1 comment:

ANULATA RAJ NAIR said...

सुंदर..........................

अनु