Saturday 10 September 2011

उधेड़बुन !

उधेड़बुन !

धरती से प्रथम परिचय ,
प्रभु ने कहा दुनिया बड़ी सुहानी है !
इसकी हर खुशबू में महकना ज़रूरी है ....
माँ ने बढ़ाये प्यार और सुरक्षा भरे हाथ,
समझाया दुनिया बड़ी अनजानी है !
हर कदम सम्भाल कर रखना ज़रूरी है ....
कैसी उधेड़बुन है !!!
सुन्दरता चहुँ ओर ,बुराई आदमखोर .
बड़ी देर से समझ आया !
हंस बनूँ ,जीवन के समंदर से मोती चुनु ख़ुशियो के ,
वैर छोड़ ,सुनहरी लड़ियाँ पिरोउं हर खुबसूरत लम्हों के ...


बड़े हुए, कई रिश्ते बने नए पुराने !
सुना रिश्ते भगवान की देन है,
जिसे सलीके से निभाना है.....
हर दर्द में जीकर हर जज्बे में घुलकर,
रिश्तो को सहेजना है प्यार से इकरार से....
जब निभाने की बारी आई ,
कुछ अपने पराये ,पराये अपने लगे,
कैसी उधेड़बुन है !!!
कुछ रिश्ते इश्वर की नेमत ....
तो कुछ निबाहने की जद्दोजहद ...
ज़माने ने समझाया ,

दिए की बाती बनूँ , इसके हर डोर में बंध जाऊं .....
पर अपनी लौ से कुल को आलोकित कर जाऊं ....


पढ़ा किताबो में !इश्क खुदाई है बंदगी है,
अपने अस्तित्व को किसी के लिए मिटाने की बानगी है !!
कइयो ने कहा इश्क आग का दरिया है ,
जिसमे पागलपन है ,जूनून है ,दीवानगी है !!
कैसी उधेड़बुन है !!!
प्यार अगर बंदगी है तो प्यार के दुश्मन हज़ार क्यूँ ....
कभी जात पात के बंधन कभी खाप पंचायत क्यूँ .....
बड़ी देर से समझ आया.....


प्यार परवाने की शमा के लिए मिटने की प्यास है !
विरह हो तो मिलने को तरसते हैं ,मिलन हो तो जलकर मरते हैं !!!


इतिहास पुरातत्व की कहानी है ,
अपने पुरखो की नयी पीढ़ी की जुबानी ...
इसमें हिटलर को दानव
और गाँधी को देवता बनाने की शक्ति है,
अतः दूसरो को सीढ़ी बना खुद उंचाई पर चढ़ना ही सच्चाई है...
ताजमहल उसे बनाने वाले मजदूरों की नहीं ,
शाहजहाँ के प्यार की गहराई है ........

कैसी उधेड़बुन है !!! पर अब समझ आया....

खुद का नाम बनाने से बड़ा है अपनी पीढ़ी का निर्माण .....
वही असली धर्म है और वही है सच्चा निर्वाण ......


धर्म !सत्य की राह में कितने भी रोड़े आयें
अधर्म का साथ छोड़ उस डगर पर चलने का नाम है ....
विभीषण ने राम के लिए सर्वस्व लुटाया ,
माँ - बाप , भाई - बहन सबको ठुकराया ....
कृष्ण अर्जुन के सारथि थे लेकिन ,
अर्जुन ने निहथ्थे कर्ण पर बाण चलाया ....
फिर से वही उधेड़बुन ,वही प्रश्न !!!
अगर प्रभु सत्य के साथ हैं तो बिभीषण बदनाम क्यों ?

अर्जुन पूज्य और हमें उसकी भक्ति पर अभिमान क्यों ?
अब समझ आया !

पांडवो की कौरवो पर जीत ,पृथ्वी से दुष्टों की समाप्ति के लिए था ...
विभीषण का धर्मयुद्ध लंका राज्य और मंदोदरी की प्राप्ति के लिए था ....
धर्मयुद्ध निस्वार्थ हो तो पूजनीय है,अगर सत्ता  हेतु हो तो निंदनीय है !!!

इश्वर !निर्गुण रूप में अनंत है ,
ब्रम्ह है , शाश्वत है निसंग है !
सगुन रूप में प्रभु घट घट में है ,
सागर में , अम्बर में , दिगंत में !
हर कर्म बुरा हो या भला समर्पित कर दो उन्हें
"त्वदीयं वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पये "
फिर वही उधेड़बुन ,असमंजस में हूँ !
अगर हर कर्म का सञ्चालन तेरे हाथो में है
तो इतनी आतंकशाही , इतनी बर्बादी का आलम क्यों ...
नफरत की आग में इंसान इतना वहशी और पागल क्यों ....
अब समझ आ रहा है हमें ....
इश्वर ही धुरी है हमारे सब कर्मो की !ये सच है ...
पर हर क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है

समर्पण पुष्पों का हो तो जिंदगी से खुशबु मिलेगी
अगर  समर्पण  नफरत का हो तो कांटे बिछेंगे राहों में
स्वर्ग नरक सब झूठे हैं ,इसी धरती पर पाप और पुण्य है
जिसने इसे समझ लिया वही मनुष्य धन्य है !!!!


2 comments:

sam said...

Almost all the ideas we have about being a man or being a woman are so burdened with pain, anxiety, fear and self-doubt. For many of us, the confusion around this question is excruciating. Amidst the confusion of the times, the conflicts of conscience, and the turmoil of daily living, an abiding faith becomes an anchor to our lives. As one gets older one sees many more paths that could be taken. Artists sense within their own work that kind of swelling of possibilities, which may seem a freedom or a confusion and I believe that it becomes a troubled continent because there are those who must always cause confusion so that we do not keep these natural resources.

Dil ka Rishta/MPrriyadarshini said...

Sam,in four words,U r the best...