Friday 28 September 2012

पुष्पित सफ़र.खुशियों की डगर !!!



जिंदगी के छोटे सफ़र में...
कई दर्द मिले,तो कई हमदर्द भी मिले..
कई गम मिले तो खुशियाँ भी तो मिली
दुनिया में नफरत मिली ,तो अटूट प्यार भी मिला..
अपनों में बेगाने मिले ,तो बेगानों में अपने भी मिले..

फिर भी सबने मुझे निखारा ही...



पहले मैं ऐसी नहीं थी शायद..
शिकायतों के ताने बाने बुनना ...
रिश्तो की डोर में पल पल, उलझना-सुलझना..
जिंदगी इन्ही लम्हों में गुजरती थी जैसे...

तभी एक दिन मुझे फूलो ने बुलाया,
मुझे देखकर थोडा हंसा ,खिलखिलाया
मुझे बड़ी कोफ़्त हुई,
ये भी भला क्या  बात हुई...
मन में जो कसक थी उसे जुबान पर लाकर
मैंने फूलो से ये सवाल दुहराया
जिंदगी की कड़वाहट क्या तुम्हे दाग दार नहीं करती
दुःख की बदरी क्या तुम्हारे खुशियों को तार तार नहीं करती
मैंने पूछा हे पुष्प ,
तुम सुरभित भी हो,सजीले भी ..
सुन्दरता तेरे तन मन में समाई है
नीरव निशा में भौरे तेरे पंखुड़ियां में बंद
तुम्हारे रस में पलते हैं
सुबह की प्रथम किरण में जब तुम पुनः खिलते हो तो
भौंरे वेबफा होकर आकाश में उड़ जाते हैं
कलियों में चहुँ ओर कंटक का साया है

फिर भी तुम इतने सुवासित कैसे हो
इतने पावन कैसे हो...
मंदिर की हर पूजा तेरे पुष्प से ही होती है
खुशबू का पर्याय गुलाब इत्र होता है
सुंदरियों का श्रृंगार भी तुम बिन अधुरा है
इतने कडवे अनुभव के बाद भी इतना उदारपन कैसे
एक हम है,
खुशियाँ मिली तो अपनेमें लबालब हुए बैठे हैं
गम मिला तो खुद को खुद से ही तोड़ बैठे हैं
फूल ने हंसकर गुलाबी पंखुड़िया फैलाई,
मधुर मुस्कान के साथ जीने का मूल मंत्र समझाया
खुशिया कहीं बाहर नहीं हमारे अन्दर है,
खुद को मिटाकर नहीं खुद को संवारकर
जिदगी को सजाना सिर्फ हम कर सकते हैं.
कोई और नहीं....

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